+91-9977847327,9425049979
Posted on : 17 Apr 2020
भगवान श्री कृष्ण और बलराम का मथुरा गमन:= तदनंतर इन्होंने जब मथुरा पुरी में जाने की आज्ञा प्रदान की तब आचार्य सांदीपनि गदगद होकर इस प्रकार कहने लगे मेरी आत्मा तो स्वता तुम दोनों के प्रति स्नेह रखती है इसने में पुत्र की प्राप्ति रूपाली लगाकर बुद्धि से उसे अतिशय निर्लज्ज कर रही हैं इसलिए तुम दोनों को यदुवंशी प्रतिजन में मेरे शिष्य है अथवा पुत्र में नहीं मैं प्रार्थना करता हूं और मैं तुम्हारा गुरु हो अथवा हम दोनों तुम्हारे माता-पिता हो यही हमारी मंगल कामना है भकक्ता विद्या बंधुओं कृत्वा वाम यदि प्रभु तथा भक्ति ऐवइच्छा कारणं दुनिर्माण श्री कृष्ण और बलराम ने कहा हे गुरुवर जब आपने हम दोनों को शिष्य बनाया है तो आपकी इच्छा को पूरा करना हमारा परम कर्तव्य आप जैसा चाहते वैसा ही होगा महात्मा भगवान श्री कृष्ण बलराम तत्पश्चात वापस अपने जन्म स्थान मथुरा नगरी में जाने के लिए सांदीपनि और उनकी पत्नी सुश्रुषा से जाने के लिए प्रणाम किया ,गुरु पत्नी ने आंखों में आंसू लिए दोनों को गले लगाया और जाने की आज्ञा दी, जब वे दोनों आश्रम से निकल रहे थे उस समय पूरे मार्ग पर अवंतिका पुरी की जनता खड़ी होती सभी के नेत्रों से अश्रु की धारा बह रही थी! वह सब भी भगवान के साथ-साथ पीछे चलने लगे बड़ी मुश्किल से वह दोनों अवंतिका पुरी से बाहर हुए बाहर पहुंचते हुए भगवान ने अपना रथ रोका और पीछे चली आवे जनता का अभिवादन किया और उनसे कहने लगे हमारी आत्मा का उत्पत्ति स्थान तो मथुरा मंडल है और हमारे गुणों का उत्पत्ति स्थान या अवंतिका पुरी है इसलिए मथुरा वासियों की भांति आप अवंतिका वासियों को देखने के लिए हमारा मन प्रतीक्षा करता रहेगा अर्थात हम सदा आपके पास आते जाते रहेंगे सभी अवंतिका पुरी वार्षिक गदगद होकर भगवान से बोले हे भगवान विष्णु की इच्छा पूरी करने वाला ही ईश्वर होता है आपने हम को बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया यह हमारा सौभाग्य जय श्री कृष्ण! इतना सुनने के बाद प्रभु वहां से अपने रथ के द्वारा मथुरा की ओर प्रस्थान कर गए !

Related posts

संपर्क करे