श्री कृष्णा ने महात्मा से पूछा आप रोज गोमती नदी में इतनी दूर स्नान करने के लिए जाते है , मैं आपकी कृपा और आशीर्वाद से गोमती मय्या का जल यही प्रकट कर सकता हूं, लेकिन गुरु सांदीपनि जी को यह विश्वास नहीं था कि, एक 11 वर्षीय बालक गोमती मय्या का जल कैसे प्रकट कर सकता है | भगवान श्री कृष्ण गुरु सांदीपनि व्यास जी से कहा की आप कल प्रातकाल गोमती में स्नान आदि कार्यों के लिए पधारे और वहां पर अपने कमंडलु और खड़ाऊ पादुका वही घाट पर छोड़ कर आइएगा ,गुरु सांदीपनि व्यास जी ने ऐसा ही किया स्नान करने के बाद अपने कमंडल और पादुका वहीं पर छोड़ कर वापस अपने गुरुकुल में पधार गए | भगवान श्रीकृष्ण अपने गुरु की प्रतीक्षा ही कर रहे थे , गुरुदेव को देखकर उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक गुरु जी को प्रणाम किया ,और आशीर्वाद पाकर उन्होंने अपना धनुष उठाया और मस्तक पर लगाकर वहा गोमती मैया का आहवान किया और उस बान को धरती पर इतनी तीव्र गति से मारा की वह बाण पाताल लोक तक चला गया | वहां पर जहां बाण मारा गया था वहां एक बहुत बड़ा गड्ढा बन गया, नीचे जाकर उसने गाय के मुख का रूप ले लिया और उसके मुंह से जल की धारा प्रवाहित होने लगी देखते ही देखते वहां पर एक बहुत बड़ा जलाशय बन गया जिसे गोमती कुंड नाम दिया गया |