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महर्षि सांदीपनि आश्रम

महर्षि सांदीपनि ऋषि एक महान तपस्वी, 18 कलाओं में पारंगत विद्वान ब्राह्मण पुत्र थे |  गुरु सांदीपनि मूल रूप से काशी के निवासी थे, लेकिन वह अपने मृत पुत्रों के वियोग में काशी छोड़कर उज्जैन (अवंतिका पुरी) मैं पधारे थे! वे जब यहां आए तो यहां से सिंहस्थ का मेला लगा हुआ था!  इस अवंतिका पुरी की धरती पर सूखा और अकाल पड़ा हुआ था, एवं यहां के निवासियों में भोजन और जल के लिए त्राहि-त्राहि मच रही थी, जब उज्जैन निवासियों को यह पता लगा कि काशी के प्रखंड विद्वान महर्षि सांदीपनि अवंतिका नगरी में पधारे हैं, तो सभी जनता एकत्र होकर अवंतिका नगरी स्थित चंदनवन में गुरु सांदीपनि के दर्शनों के लिए उपस्थित हुए, सबको व्याकुल देखकर गुरु सांदीपनि ने उन लोगों से वहां आने का प्रयोजन पूछा तो, सभी ने बताया कि महात्मा आप 10 प्रतापी प्रकांड विद्वान अट्ठारह कलाओं में पारंगत ऋषि हैं, इस नगरी में आपके चरण कमल पढ़ने से यहां की भूमि और भी पवित्र हो गई है! आप ही है , जो हमारी समस्या से मुक्ति दिला सकते हैं, उन्होंने कहा मान्यवर इस पवित्र अवंतिका पुरी में सूखा और अकाल पड़ा हुआ है यहां पर महामारी ने अपने पैर पसार रखें इस भयंकर संकट से आप हमारी रक्षा कीजिए, मुनि सांदीपनि व्यास जी बहुत ही कोमल ह्रदय वाले एक नेक विद्वान् थे, उनसे जनता की दशा देखी नहीं गई! Read more

 

 

आश्रम सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण  जानकारी

श्री कृष्णा ने महात्मा से पूछा आप रोज गोमती नदी में  इतनी दूर स्नान करने के लिए जाते है , मैं आपकी कृपा और आशीर्वाद से गोमती मय्या  का जल यही प्रकट कर सकता हूं, लेकिन गुरु सांदीपनि जी को यह विश्वास नहीं था कि, एक 11 वर्षीय बालक गोमती मय्या का जल कैसे प्रकट कर सकता है | भगवान श्री कृष्ण गुरु सांदीपनि व्यास जी  से  कहा की आप    कल प्रातकाल गोमती में स्नान आदि कार्यों के लिए पधारे और वहां पर अपने कमंडलु और खड़ाऊ पादुका वही घाट पर छोड़ कर आइएगा ,गुरु सांदीपनि व्यास जी ने ऐसा ही किया स्नान करने के बाद अपने कमंडल और पादुका वहीं पर छोड़ कर वापस अपने गुरुकुल में पधार गए | भगवान श्रीकृष्ण अपने गुरु  की प्रतीक्षा ही कर रहे थे , गुरुदेव को देखकर उन्होंने  प्रसन्नता पूर्वक गुरु जी को प्रणाम किया ,और आशीर्वाद पाकर उन्होंने अपना धनुष उठाया और मस्तक पर लगाकर वहा   गोमती  मैया का आहवान  किया और उस  बान  को धरती पर इतनी तीव्र गति से मारा की वह  बाण पाताल लोक तक चला गया  | वहां पर जहां बाण  मारा गया था वहां एक बहुत बड़ा गड्ढा बन गया, नीचे जाकर उसने गाय के मुख का रूप ले लिया और उसके मुंह से जल की धारा प्रवाहित होने लगी देखते ही देखते वहां पर एक बहुत बड़ा जलाशय बन गया जिसे गोमती कुंड नाम दिया गया | 
उज्जैन को समस्त तीर्थो में तिल भर महत्त्व अधिक मिला है और यह स्वयं महाकाल की नगरी है, इसलिए यहाँ पर समस्त प्रकार के सर्प दोष एवं काल सर्प दोष का निवारण संभव है,
एक प्राचीन पद्धति कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण से मिलने भगवान महादेव पधारे थे यह तिथि कार्तिक मास की वैकुंठ चतुर्दशी पर आती है उस दिन हरि कृष्ण और हर महादेव का मिलन हुआ था अवंतिका नगरी भगवान शिव की नगरी कहलाती
मंगल भात पूजा पूरी तरह से आपके जीवन से जुडी हुयी है इसलिए इस पूजा को विशिस्ट, सात्विक और विद्वान ब्राह्मण द्वारा गंभीरता पूर्वक करवानी चाहिए, | गुरु जी को इस पूजा का महत्त्व और विधि भली भांति से ज्ञात है और अभी तक इनके द्वारा की गयी पूजा गयी पूजा भगवान शिव की कृपा से सदैव सफल हुयी है।
आप मंदिर में किसी भी प्रकार  सहयोग के लिये पंडित श्री रूपम व्यास जी से सम्पर्क कर सकते है Mob -9977847327,9406626131 |आप मंदिर निर्माण  कार्य ,गौशाला ब्राह्मण भोजन,अन्न  दान  आदि के माध्यम  से सहयोग प्रदान कर  सकते  है। 
आप मंदिर में पूजन एवेम अनुष्ठान के लिये पंडित श्री रूपम व्यास जी से सम्पर्क कर सकते है Mob -9977847327,9406626131

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